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आवारा बादल

मीना भाभी 

रवि शादी में से लौट तो आया था मगर  उसकी आंखों के सामने हरदम रीना का हसीन चेहरा घूमता रहता था । कितनी नशीली आंखें थी रीना की । उन्हें देखते रहने को जी चाहता था रवि का ।  काश वह उन्हें हमेशा देखता रहता । उन आंखों में ही डूबा रहता और नशे में पड़ा रहता  । बिखरे बिखरे से बाल । रेशम से भी मुलायम । कैसी भीनी भीनी सी खुशबू आ रही थी उनमें से जब उसने अपनी दोनों हथेलियों में रीना का चेहरा थामकर एक लंबा सा चुंबन लिया था उसका तब वह लबों की मिठास और बालों की महक में खो सा गया था । दहकते अनार से लाल लाल होंठ । वे इतने मीठे होंगे उसे पता ही नहीं था । जिंदगी के इस रंग से वह अब तक अपरिचित ही था । "किस" इतना प्यारा होता है , उसे पता ही नहीं था ।  उस "किस" के बाद जैसे और कुछ करने की इच्छा ही नहीं रही थी उसकी । काश ऐसा किस रोज रोज होता  या दिन में कई बार होता । पर यहां तो कोई रीना नहीं है फिर किस कहाँ से होगा ? क्या यहां पर भी कोई रीना मिल सकती है ? अब उसे किसी "रीना" की जरूरत महसूस होने लगी थी । जब तक कोई "प्रेम" के रंग से अछूता हो तो उसे प्रेम का रंग दिखाई नहीं देता मगर जब कोई प्रेम में आकंठ डूब जाये तो उसे फिर प्रेम के अतिरिक्त और कुछ नहीं दिखता है । 

रवि ने "प्रेम" की पिक्चर तो नहीं देखी थी मगर ट्रेलर जरूर देख लिया था । एक बार ट्रेलर देखने के बाद पिक्चर देखने का मन कर ही जाता है । वह पिक्चर देखने को उतावला हो रहा था मगर कुछ हासिलनहीं हो पा रहा था । वह खयालों की दुनिया में खोने लगा । कल्पनाओं में वह परीलोक की सैर करने लगा था । पढ़ने में मन नहीं लगता था उसका । मन लगे भी तो कैसे ? आंखों में तस्वीर तो रीना की बसी हुई थी । रवि को अब चारों ओर वही नजर आती थी और कुछ नजर आता ही नहीं था । किताबों में उसी का चेहरा , कॉपी में उसी की शक्ल दिखाई देती थी । यहां तक कि आईने में भी उसे अपने चेहरे के बजाय रीना का ही चेहरा दिखाई देने लगा था । यह उम्र होती ही ऐसी है । इस उम्र में अगर किसी हसीना से "कुछ" मिल जाये तो बाकी सभी लड़कियों से "कुछ न कुछ" मिलने की आस लग जाती है । 

दिन ख्वाबों खयालों में बीत रहे थे । सर्दियों के दिन आ गये थे । रविवार का दिन था । स्कूल की छुट्टी थी । परीक्षा सिर पर आ गई थीं । उसके पिताजी यानि कि सरपंच साहब ने भी उसे परीक्षाओं की अच्छी तैयारी करने के लिए कह दिया था । परीक्षाओं में पास होने के लिए उसे पढ़ना तो पड़ेगा । मगर वह पढे तो कैसे पढे ? कमरे के अंदर गलन बहुत ज्यादा थी । कंपकंपी छूटने लगती थी उसकी । ज्यादा देर,तक बैठा नहीं रहा जा सकता था कमरे में । रवि परेशान था कि कैसे पढे वह ?  रवि ने सोचा कि क्यों ना ऊपर छत पर चला जाये । वहाँ पर धूप रहेगी तो सर्दी नहीं लगेगी और पढ़ने में कोई अड़चन नहीं आएगी । एक पंथ दो काज । धूप की धूप और पढाई की पढाई । पढ़ने के लिए एकदम सही जगह है छत । यह सोचकर वह ऊपर छत पर आ गया । 

जैसे ही वह छत पर आया सामने का नजारा देखकर वह चकरा गया । उसने जो देखा था वह किसी सपने से कम नहीं था । उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि वह हकीकत है या एक सुहाना सपना । उसने एक दो बार पलकें झपकाई मगर हकीकत तो हकीकत रहती है, बदल तो नहीं जाती है न । रवि सामने क्या देखता है कि मीना भाभी छत पर नहा रही थी धूप में । उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि मीना भाभी ऐसे खुले में भी नहा सकती हैं और वो भी बेरोटोक सार्वजनिक प्रदर्शन करते हुये । केवल पेटीकोट पहने हुये थीं मीना भाभी । ऊपर का भाग अनावृत था । उनका पेटीकोट भी जांघों से काफी ऊपर तक सरका हुआ था और गीला था । मीना भाभी दीन दुनिया से बेखबर होकर नहाने में मगन थीं और अपने बदन पर साबुन मलने में तल्लीन थीं । नहाते वक्त कोई गाना भी गुनगुना रही थीं शायद । गाने के बोल तो उसे साफ साफ सुनाई नहीं दे रहे थे मगर ऐसा लग रहा था कि अमिताभ बच्चन की एक फिल्म सौदागर का गाना "सजना है मुझे सजना के लिए" गा रही थीं । हुस्न की अनावृत मूर्ति को देखकर रवि की आंखों के आगे बिजलियाँ सी कौंध गई । वह अपलक निहारता रहा मीना भाभी को । मीना भाभी को वैसे बहुत बार देखा था उसने । बातें भी की थी । भाभी ने कभी कभी छोटा मोटा बाजार का काम भी बताया था जो उसने कर दिया था । मीना भाभी के काम के लिए उसने कभी मना नहीं किया था । मीना भाभी बड़े ही सलीके से रहने वाली महिला थीं । रवि उनकी बहुत इज्जत करता था मगर आज उन्हें लगभग प्राकृतिक अवस्था में देखकर वह आश्चर्यचकित रह गया था । किंकर्तव्यविमूढ़ होकर वह वहीं का वहीं खड़ा रह गया । 

जैसे ही उसे भान हुआ कि वह एक नहाती हुई स्त्री को देख रहा है, उसे अपनी भूल का अहसास हुआ । माना कि रीना के चुंबन का असर गहरा था पर उसमें अभी कुछ संस्कार बचे थे । लोकलाज के डर से वह वापस नीचे जाने को उद्यत हुआ ही था कि अचानक मीना भाभी की निगाह उस पर पड़ गयी । दोनों की आंखें चार हो गई।  जब दोनों ने एक दूसरे को देखा तो दोनों ही अचकचा गये थे । मीना भाभी नहाते नहाते एक बार तो पत्थर की मूर्ति की तरह जड़ हो गई थीं । ना तो रवि ने ऐसी कल्पना की थी  और ना ही मीना भाभी ने कभी की थी शायद । यदि करती तो क्या इस तरह खुले में निश्चिंत होकर ऐसे नहाती ? 
"वैसे मीना भाभी को इस बारे में सोचना चाहिए था" रवि के मन में यह विचार आया । मीना भाभी तो संस्कारी हैं , मैच्योर हैं और बहुत सुंदर हैं । एक औरत इस तरह से खुले में नहीं नहाती है फिर मीना भाभी जैसी खूबसूरत महिला को तो बिल्कुल नहीं नहाना चाहिए ।  उसने कभी अपनी मां को तो ऐसे नहाते नहीं देखा था । दोनों थोड़ी देर एक दूसरे को ऐसे ही देखते रहे । अचानक भाभी को होश आया और वह अपनी गीली साड़ी उठाकर अपने बदन पर डालने लगी । यह देखकर रवि घबरा कर नीचे चला आया । 

नीचे आकर रवि अपने कमरे में बंद हो गया । रवि का दिल बहुत जोर जोर से धड़क रहा था । जैसे लोहार की धौंकनी "धाड़ धाड़" चल रही हो । बदन में झुरझुरी पैदा करने वाली सर्दी में भी वह पसीने में लथपथ हो गया था । " यह सब क्या हो गया ? कैसे हो गया" ? रवि सोचने लगा । "इस घटना में क्या उसका कोई कसूर है ? अगर कोई खुले में "खुलकर" नहायेगा तो बाकी लोग अपनी आंखें बंद कर लेंगे क्या" ? वह मन ही मन बुरा भला कह रहा था मीना भाभी को । उसे भाभी पर गुस्सा आने लगा था । "कितनी शर्मिंदगी उठानी पड़ रही है उसे" ? सोचकर वह शर्मिन्दा हो रहा था । अचानक उसके मन में खयाल आया कि जब उसे इतनी शर्मिंदगी उठानी पड़ रही है तो फिर मीना भाभी का क्या हाल हो रहा होगा ? 

इस बात को सोचकर ही घबराहट सी होने लगी थी रवि को । मन का चोर कहने लगा कि अगर भाभी ने घबराहट में मां को बता दिया तो ? मां को भी कितना और कैसे बतायेगी भाभी , यह भी पता नहीं है । कहीं सारी गलती उसी की बता दी तो ? जैसे शीला चाची ने सारा दोष बिहारी पर मढ़ दिया था कहीं वैसा ही तो नहीं कर देगी मीना भाभी ? औरतों की बातों पर सब कोई विश्वास कर लेता है । सब लोग मानते हैं कि ऐसे मामलों में औरतें झूठ नहीं बोलेंगी , पर यह भी सही नहीं है । शीला चाची ने सरासर झूठ बोला था और सब लोगों ने उसकी बात पर विश्वास किया था । इसका तो वह खुद गवाह है । यदि इसी तरह मीना भाभी ने अनाप शनाप आरोप लगा दिये तो उसकी बात पर कौन यकीन करेगा ? यह तो गंभीर संकट हो गया । 

"उसकी इज्जत खतरे में है" यह सोचकर रवि बेचैन हो गया । इस बेचैनी का कोई तोड़ उसके पास नहीं था । फिर दिल ने ही उत्तर सुझा दिया "इसमें मैंने क्या किया है ? प्रदर्शनी आप करवायें और दंड हम भुगतें ? यह तो बहुत नाइंसाफी है । आखिर मेरा कसूर क्या है ? क्या ऊपर छत पर धूप सेंकना भी कोई अपराध है ? उसने भाभी को ऊपर छत पर सरेआम नहाने के लिए तो नहीं कहा था । उनको खुद को सोचना चाहिए था । छत भी कोई नहाने की जगह है ? अगर वो खुद ही ऐसा कर रहीं हैं तो अंजाम भी उन्हें ही भुगतना चाहिए । मुझे क्यों मोहरा बनाएंगी वो ? मेरा अपराध क्या है" ? सोचता ही रह गया रवि । 

पर रह रह कर एक ही डर उसके दिल में घुसने का प्रयत्न कर रहा था । " रवि की बात अपनी जगह सही है पर उसने अगर मां को कह दिया तो " ? इस बात से वह कांप गया था । जिस मां ने उसे कभी किसी बात पर आज तक नहीं डांटा था आज वो एक झूठी बात पर ना जाने कितना जलील करेंगी उसे ? क्या मेरी बात भी सुनेंगी वो ? कहीं ऐसा ना हो कि वे पहले ही कोई फरमान जारी कर दें और हमें अपनी बात कहने का अवसर भी ना दें " सोच सोचकर रवि का कलेजा मुंह को आ गया था । 

वह अपने कमरे में आकर गुमसुम सा बैठ गया । किताब लेकर पढने बैठा मगर आंखों के सामने मीना भाभी अनावृत अवस्था में विराजमान हो गयीँ । उसने उन्हें हटाने की लाख चेष्टा की मगर वो वहां से हटने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं । उनका संगमरमरी बदन बार बार उसकी नजरों के आगे बिजली की तरह कौंध रहा था । उस उम्र में नारी का बदन बहुत आकर्षित करता है । किशोरावस्था होती ही ऐसी है । किसी लड़की को चोरी चोरी देखने की इच्छा होती है और यदि मीना भाभी के जैसे "दर्शन" हो जायें तो फिर मुकद्दर के दरवाजे ही खुल जायें । ऐसी ही घटनाओं से किशोर किशोरी गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं । यही वह अवस्था है जब लड़के और लड़कियां दिग्भ्रमित हो जाते हैं । प्यार का सिलसिला इसी अवस्था से शुरू होता है । नारी का शरीर बहुत अच्छा लगता है तरुण वय के लोगों को । सुडौल बदन आकर्षित करता है किशोर मन को और मीना भाभी का बदन तो जैसे सांचे में ढला हुआ था । 

रवि के मस्तिष्क में झंझावातों का दौर चल रहा था । उहापोह की गहरी खाई में डूबता जा रहा था रवि । यह घटना कोई आनेवाले तूफान का संकेत लग रही थी उसे  । वह मां की डांट से बचने के लिए मौहल्ले में खेलने चला गया । हालांकि वहां उसका मन बिल्कुल नहीं लग रहा था मगर उसको तो मां से दूर रहना था । वह बुझे मन से खेलने लगा । 

लगभग दो घंटे के बाद वह डरते डरते घर वापिस आया । उसे लगा कि मीना भाभी ने अब तक तो मां को बता दिया होगा और मां डंडा लेकर दरवाजे पर ही बैठी होंगी कि कब मैं आऊं और कब अच्छे से मेरी खबर ले । वह डरते डरते घर में घुसा मगर दरवाजे पर मां नहीं थी । उसकी आशंका निर्मूल साबित हुई । मां अपने घरेलू कामों में व्यस्त थीं । मां ने इतना ही कहा था "कहाँ चला गया था तू ? खाना ठंडा हो गया है ना । खाने के टाइम पर खेलने चला जाता है । बावला कहीं का । आगे से ध्यान रखना" । 

मां के इस ममता भरे व्यवहार से रवि को कुछ तसल्ली सी मिली । क्या मीना भाभी ने अब तक मां को कुछ नहीं बताया है ? या मां ने खुद ही उन्हें कह दिया होगा कि इसमें रवि की क्या गलती है ? उसने उनके घर में जबरदस्ती घुसकर तो उसे ऐसे नहीं देखा था न ? जब काम ऐसे करोगी तो सब कोई देखेगा, रवि हो या कोई और । क्या पता मां ने मीना भाभी को डांटकर भगा दिया हो ?अगर ऐसा हो जाये तो आनंद आ जाये । इस विचार से रवि को कुछ सांत्वना सी मिली । मगर चोर की दाढ़ी में तिनका हमेशा रहता ही है । चोर कभी चिंता मुक्त नहीं हो सकता है ।

बड़ी मुश्किल से वह दिन गुजरा था रवि का । रात हो गई । रवि का मध खाने में भी  नहीं लगा यद्यपि खाना उसकी पसंद का ही बना था । आशंका से ग्रसित तन और मन कभी प्रसन्न नहीं हो सकते हैं । अनजाने भय का साया इतना विकराल होता है कि उसमें सब खुशियां सिमटकर रह जाती हैं । आशंकाओं के बादल हरदम छाये रहते हैं । आफत की बारिश कभी भी हो सकती है । रवि के लिए यह रात गुजारनी बहुत भारी पड़ गई थी । पता नहीं क्या होने वाला था । 

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2 Comments

Chetna swrnkar

30-Jul-2022 10:49 PM

Behtarin rachana

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fiza Tanvi

15-Jan-2022 11:52 AM

Good

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